हुस्न माया है जिस्म फानी है।
फिर गृहस्थी का क्या मआनी है।।
मौत माना कि सबको आनी है।
जीस्त क्या सच में बेमआनी है।।
फिर फ़साने किसे सुनाते हो
जीस्त के बाद क्या कहानी है।।
क्या करेंगे बहिश्त में पीकर
हर खुशी जब यहीं मनानी है।।
हूर, जन्नत,शराब की नहरें
शेख़ कुछ तो ग़लत बयानी है।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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