लिखिए पर कुछ मानी भी हो।
पढ़ने में आसानी भी हो।।
मक़्ता भी हो मतला भी हो
बेहतर ऊला सानी भी हो।।
शेर बहर से बाहर ना हों
उनमें एक रवानी भी हो।।
महफ़िल भीड़ न शोर शराबा
खलवत हो वीरानी भी हो।।
पा लेना ही इश्क़ नहीं है
उल्फ़त में क़ुरबानी भी हो।।
थोड़ी सी हो ख़्वाबखयाली
और हक़ीक़तख़्वानी भी हो।।
ताब भले हो रुख पर कितना
पर आंखों में पानी भी हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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