पगडंडी तक तो रहे अपनेपन के भाव।

पक्की सड़कों ने किए दूर हृदय से गाँव।।


शीतल छाया गाँव मे थी पुरखों के पास।

एसी कूलर में मिले हैं जलते एहसास।।


टीवी एसी फ्रीज क्लब बंगला मोटरकार।

सब साधन आराम के फिर भी वे बीमार।।


किचन मॉड्यूलर में नहीं मिलते वे एहसास।

कम संसाधन में सही थे जो माँ के पास।।


बढ़ जाती थी जिस तरह सहज भूख औ प्यास।

फुँकनी चूल्हे के सिवा क्या था माँ के पास ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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