जग नदिया के इस पार रहो।

बेहतर है अपने द्वार रहो।।

या अपमानों का विष  पीकर

शिव बनने को तैयार रहो।।


छुप कर काटेंगे अश्वसेन

तुम लाख परीक्षित बने रहो

हैं जन्म जन्म के वे अशिष्ट

तुम बेशक़ शिक्षित बने रहो


या फणिधर भोले बन इनकी

क्षण क्षण सुनते फुफकार रहो------


फिर अन्य किसी की महफ़िल में

अवमानित हो क्यों रोते हो

फिर तिरस्कार या मान मिले

विचलित प्रमुदित क्यो होते हो


इससे बेहतर है अपने घर 

ही रहो भले  बेकार रहो------


साहनी सुरेश कानपुर

9451545132

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