ऐसा लगता है कि आने वाले समय मे सरकार नागरिकों के लिए विभिन्न आर्थिक और सामाजिक स्तर के ब्लॉक या वर्ग बनाने की कोशिश में हैं। आर्थिक असमानताओं की इस अवस्था मे निम्न श्रेणी के नागरिक को लगभग सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिये टैक्स देना आवश्यक होगा और इस व्यवस्था में उसे किसी भी प्रकार की रियायत नहीं मिलेगी।

 और अति उच्च आय वर्ग के लोगों को सभी तरह की सब्सिडीज , रियायतें ,ऋण सुविधाएँ और दोहरी तेहरी नागरिकता या मल्टीकन्ट्री सिटिजनशिप भी उपलब्ध रहेंगी। और सबसे बड़ी बात उच्चस्तरीय प्रशासनिक सेवाओं और समितियों में इनको कोलोजियम और लेटरल इंट्री भी मिला करेगी। 

 यानी बढ़ते आर्थिक असमानता के कारण देश के 90प्रतिशत नागरिक आर्थिक बाड़ों या उन अदृश्य  नाकाबंदी के शिकार होंगे ,जिनमें उसके मौलिक अधिकार नहीं के बराबर रह जाएंगे।

 सबसे बड़ी बात ऐसी व्यवस्था किसी मोनार्की से भी खतरनाक हो सकती है।क्योंकि इसमें सबसे पहले टॉर्च बीयरर्स,अव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने वाले , फिर निष्पक्ष पत्रकार फिर विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है। और जब विपक्ष समाप्त हो जाये तो इकनोमिक ब्लॉक के नियम सख्ती से लागू किये जाते हैं।

आप जिस वैश्वीकरण की बात करते हैं उस वैश्वीकरण की  अवधारणा देने वाले लोग दुनिया को एक बड़ा बाजार मानते हैं ।और बाज़ार मानवमूल्यों से सरोकार नहीं रखता। किसी देश मे आर्थिक ब्लॉकस/उपनिवेश का निर्माण करना भी ग्लोबलाइजेशन का सपना है।

हल समन्वयवाद

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