मयकशी में हिसाब क्या रखते।

क्या बचाते शराब क्या रखते।।


हुस्न ही बेनकाब आया था

हम भी आशिक थे ताब क्या रखते।।


क्या शबे-वस्ल रोज आती है

तिशनालब इज़्तराब क्या रखते।।


हम तो ख़ुद चैन से न सो पाये

उनकी पलकों पे ख़्वाब क्या रखते।।


गुल नहीं है कोइ भी उस जैसा

नाम उस का गुलाब क्या रखते।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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