हुक्मरां कोई रहे क्या फ़र्क है।
अपना बेड़ा गर्क था सो गर्क है।।
जब रहे गद्दी पे बहरे कान थे
आज कैसे सुन रहे हो तर्क है।।
माना वो दुश्मन है तुम तो दोस्त थे
तुमने भी रेता गला क्या फर्क है।।
देखते है हम बदलकर ये निज़ाम
जिंदगी तो यूँ भी अपनी नर्क है।। साहनी
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