तुम्हें कितने बहाने आ गये हैं।

जुबाँ पर सौ फ़साने आ गये हैं ।।


के लहजे में बदल से लग रहा है

कहानी में फलाने आ गये हैं।।


कभी इनसे कभी उनसे मुहब्बत

ख़ुदारा क्या ज़माने आ गये हैं।।


मुहब्बत क्या इसे इक रस्म कहिये

रवादारी निभाने आ गये हैं।।


क़यामत हुस्न और क़ातिल अदायें

कोई मक़तल में याने आ गये हैं।।


सुरेश साहनी

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