टिकुली सेनुर माथ रहा बस।
उन हाथों में हाथ रहा बस
सब अपने थे फिर क्यों जीवन्
जैसे सदा अनाथ रहा बस।।
रेल पटरियों जैसा अपना
जीवन भर का साथ रहा बस।।
उस अपने मन के मालिक का
कभी कभी मैं नाथ रहा बस।।
बिना मोल क्या बिका साहनी
दो दिन हाथोंहाथ रहा बस।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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