कैसी प्रीत निभाई तुमने।
हर सूं की रुसवाई तुमने।।
मनमन्दिर की पावनता को
कितनी ठेस लगाई तुमने।।
दिल के सनमकदे में गोया
महफ़िल तक लगवाई तुमने।।
राधे तुम ही रोक न् पाए
कुछ तो करी ढिलाई तुमने।।
ख्वाबों में जमुना तट आकर
ब्रज की याद दिलाई तुमने।।
अपना ही मंदिर तोड़ा है
धोखे में हरजाई तुमने।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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