अभी जाने का मौसम तो नहीं था।
कहर ढाने का मौसम तो नहीं था।।
ये बेमौसम की बारिश और बिजली
घटा छाने का मौसम तो नहीं था।।
चलो चलते हैं मयकश उस गली में
यूँ मैखाने का मौसम तो नहीं था।।
घिरे घन श्याम बिन राधा उदासी
ये बरसाने का मौसम तो नहीं था।।
तमन्नाओं के दिल लरजे हुए हैं
ये बल खाने का मौसम तो नहीं था।।
बहुत अच्छा लगा तुम याद आये
भुला पाने का मौसम तो नहीं था।।
जनाजे को मेरे क्यों कर सजाया
तेरे आने का मौसम तो नहीं था।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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