आशना अपनी रही है ज़िन्दगी।

हैफ़ फिर भी अजनबी है ज़िन्दगी।।


घुल रहे हैं ज़िन्दगी में सुर मधुर

कैसे कह दें बेसुरी है ज़िन्दगी।।


राब्ता जिनसे न था अपना कोई

आज वो लगने लगी है ज़िन्दगी।।


और फिर नाशाद रहती कब तलक

आज हल्का सा हँसी है ज़िन्दगी।।


आज तक गोया थी उनकी मुन्तज़िर

साथ पा कर चल पड़ी है ज़िन्दगी।।


सिर हथेली पर लिये फिरते हैं हम

उस गली में मौत भी है ज़िन्दगी।।


सिर्फ़ वो हैं बात ऐसी भी नहीं

उनकी ख़ातिर साहनी है ज़िन्दगी।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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