सुबह से रात तक चलते रहो बस।
रवायत मान कर ढलते रहो बस।।
ज़माने को कहाँ परवाह कुछ भी
नहीं खलता तुम्हीं खलते रहो बस।।
गुहर पाना है तो गहरे में जाओ
वगरना हाथ ही मलते रहो बस।।
लहू आंखों से उगलेगा शरारे
नहीं तो ख़ुद को ही छलते रहो बस।।
शज़र बनते हैं दाने खाक़ होकर
ख़ुदी रखना है तो गलते रहो बस।।
अँधेरा भी मिटेगा साहनी जी
चिराग़ों की तरह जलते रहो बस।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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