तुम कहो तो ग़ज़ल कहें तुमको।

एक खिलता कंवल कहें तुमको।।


चाँद लिखना अगर पसंद न हो

चांदनी का बदल कहें तुमको।।


उलझनों से निजात देते हो

राहतों की रहल कहें तुमको।।


ताज से भी कहीं हसीं हो तुम

क्यों न कन्चन महल कहें तुमको।।


जबसे देखा है चैन गायब है

क्यों न दिल का खलल कहें तुमको।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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