कभी तो धूप के साये से निकलो।
अंधेरों से न कतराए से निकलो।।
तुम्हारी चाल है नागिन सरीखी
चलो बेशक़ न बलखाये से निकलो।।
चलो सड़कों पे तो बिंदास जानम
न झिझको और न घबराए से निकलो।।
चलो हमपे खफ़ा हो लो चलेगा
मगर ख़ुद पर न झुँझलाये से निकलो।।
फ़साना रात का सब जान जायें
कम अज कम यूँ न अलसाये से निकलो।।
लगे है तुम से ताज़ादम ज़माना
जहां तक हो न कुम्हलाये से निकलो।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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