मुझको नया मिलता है हर बार कोई मुझमें।
अक्सर किया करता है यलगार कोई मुझमें।।
आराम नहीं देता वो मेरे ख़यालों को
मुझसे लिया करता है बेगार कोई मुझमें।।
आंखों में नहीं आता पलकों से नहीं जाता
क्या इतना ज़ियादा है बेदार कोई मुझमें।।
आख़िर ये मेरे अपने किसके लिये पागल है
क्या इतना मोहतबर है क़िरदार कोई मुझमें।।
दर्पन में मेरे अक्सर मैं ही नहीं दिखता हूँ
क्या मुझसे बड़ा भी है अनवार कोई मुझमें।।
मिल्लत के लिये मेरे भगवान जगा देना
मिसबाह कोई मुझमें अंसार कोई मुझमें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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