बारहा उसपे एतमाद आया।
जिसको ख़ुद पर न ए'तिक़ाद आया
आज मेले में वो भी याद आया।
कितना तन्हा शबे-मिलाद आया।।
नाम भी तो बदल लिया उसने
फिर कहाँ वो इलाहाबाद आया।।
जीस्त तो कब की जा चुकी थी पर
बाद मरने के मुझको याद आया।।साहनी
बारहा उसपे एतमाद आया।
जिसको ख़ुद पर न ए'तिक़ाद आया
आज मेले में वो भी याद आया।
कितना तन्हा शबे-मिलाद आया।।
नाम भी तो बदल लिया उसने
फिर कहाँ वो इलाहाबाद आया।।
जीस्त तो कब की जा चुकी थी पर
बाद मरने के मुझको याद आया।।साहनी
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