ये नहीं है कि डर से बाहर हैं
मुतमयिनी में घर से बाहर हैं
क्या करेंगे तेरा अदम लेकर
जब अज़ल से दहर से बाहर हैं
हम तो ख़ारिज हैं नज़्मगोई में
और ग़ज़लें बहर से बाहर हैं
शेर होना है फिर तो नामुमकिन
सारे जंगल शहर से बाहर हैं
तेरे सागर में कुछ कमी होगी
कितने मयकश गटर से बाहर हैं
मंज़िलों की सदा से क्या लेना
हम किसी भी सफ़र से बाहर हैं
उस ने दुनिया से फेर ली नज़रें
या कि हम ही नज़र से बाहर हैं
मुतमईनी/संतुष्टि
अदम/स्वर्ग
अज़ल/सृष्टि के आरंभ, नज़्म/कविता
ख़ारिज/अस्वीकृत, बहिष्कृत
सागर/ शराब, मयकश/शराबी, गटर/नाला
सदा/पुकार
दहर/ बुरा समय या परिस्थिति
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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