हाँ तो गद्दी पे बाप बैठे हैं।

हम समझते थे आप बैठे हैं।।


इस तरफ कुछ अनाप बैठे हैं।

तो उधर कुछ शनाप बैठे हैं।।


लोग कल  भी पढ़े लिखे कब थे

अब भी अंगूठा छाप बैठे हैं।।


कौन है आज दीन का मुंसिफ

सब लिये दिल में पाप बैठे हैं।।


राम की राह पर नहीं चलते

कर दिखावे की जाप बैठे हैं।।


है बरहना सुरेश इस ख़ातिर

आस्तीनों में सांप बैठे हैं।।


सुरेश साहनी अदीब

कानपुर, 9451545132


अनाप-शनाप /बेकार, दीन/ धर्म, मुंसिफ/ धर्माधिकारी, न्यायाधीश 

बरहना/ नग्न

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