शोर है ग़मज़दा की ख़ामोशी।
उफ्फ ये कातिल अदा की ख़ामोशी।।
कब सुनेगा सदा की ख़ामोशी।
कब मिटेगी ख़ुदा की ख़ामोशी।।
कितनी हंगामाखेज है यारब
इक तेरे मयकदा की ख़ामोशी।।
शोर बरपा गयी मिरे दिल में
क्यों मिरे हमनवा की ख़ामोशी।।
उसकी मुस्कान बात करती है
जैसे मोनालिसा की ख़ामोशी।।
बोल पड़ती है उसकी गज़लों में
साहनी की बला की ख़ामोशी।।
सुरेश साहनी ,कानपुर
9451545132
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