प्यार में नाम जैसे ही जपना पड़ा।

जाने कितनों को अपना समझना पड़ा।

स्वप्न साकार हो ना सके क्या हुआ

तब हक़ीक़त को सपना समझना पड़ा।। मुक्तक

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