हार मिली थी हार नहीं था
कैसे मुझ पर दांव लगाया
अग्नि सुता हूँ वस्तु नहीं मैं
किस एवज में भाव लगाया
द्यूत पाप है धर्म नहीं है
हर युग के प्रत्येक चरण में
मैं दुर्योधन को भी वरती
अगर जीतता उन से रण में
कहाँ गया गाण्डीव तुम्हारा
गदा कहाँ है भीम तुम्हारी
क्यों असहाय हुई सबला से
पाँच पाँच पतियों की नारी
Comments
Post a Comment