तुम जो अहले वफ़ा रहे होते।
फिर न यूँ आजमा रहे होते।।
साथ हमने जो गीत गाया था
अब भी तुम गुनगुना रहे होते।।
रूठ कर जा रहे हो जैसे तुम
हमको यूँ ही मना रहे होते।।
उस हवेली में वो सुकून कहाँ
कस्रे-दिल मे जो पा रहे होते।।
तुम जो होते अदीब तो तय था
हम न मातम मना रहे होते।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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