होठ तुमको गुनगुनाना चाहते हैं
प्रियतमें तुम गीत हो क्या।
नैन जिस पर रीझ जाना चाहते हैं
तुम वही मनमीत हो क्या।।
कर्ण मन के चाहते है
क्यों श्रवण हर क्षण तुम्हारा
देह लय क्यों ढूंढती है
संगतिय आश्रय तुम्हारा
नाद अनहद जाग जाना चाहते हैं
तुम वही संगीत हो क्या।।
प्रीति प्रण की जीत हो क्या........
क्यों रसेन्द्रिय चाहती है
नित्य प्रति वर्णन तुम्हारा
कामना की कल्पना है
रतिय आलिंगन तुम्हारा
जो शिवे मधुयामिनी में गूँजता है
तुम वही नवगीत हो क्या।।
साधना अभिप्रीत हो क्या........
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