बिछड़ के फिर से मेरा कारवां मिला ही नहीं।
मुझे ज़मीं तो मिली आसमां मिला ही नहीं।।
बिछड़ गये जो दुआओं के हाथ फिर न मिले
तपिश ओ धूप मिली सायबां मिला ही नहीं।।
मिली भटकती मेरी तिश्नगी सराबों में
मुझे नदी में भी आबे-रवां मिला ही नहीं।।
सिफ़र है मेरे लिये सब जहान के हासिल
अगर मुझे मेरा अपना ज़हां मिला ही नहीं।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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