कुछ लोग ख़ुद को वरिष्ठ, गरिष्ठ या साहित्य के क्षेत्र का बड़ा ठेकेदार होने के मुगालते में अक्सर नई कलमों के कार्यक्रम/आयोजन आदि के बारे में पोस्ट डालने पर नाराजगी या खिन्नता अथवा एतराज वाली पोस्ट्स डाला करते हैं। भाई इसका मतलब आप अदीब नहीं पूरी तरह से बेअदब , खैर जो भी हों हैं।
दरअसल मध्यप्रदेश के एक तथाकथित धुरन्धर हास्य कवि उनके व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पर अपने काव्य कार्यक्रमों के फोटो-बैनर इत्यादि पोस्ट कर देते होंगे। उन महाशय ने नवोदितों को चेतावनी के लहजे में लिखा कि अगर वे इस पर उतर आये तो नवोदित परेशान हो जाएंगे क्योंकि उनके सैकड़ों कार्यक्रम लगे रहते हैं। उन्होंने जाने कितनों को दिल्ली लेवल का कवि बना दिया । और जिस पर दृष्टि वक्र हुई तो उसका सिंह भी बकरी हो गया। वैसे अगर ये इतने धुरन्धर होते तो इन्हें अपने बारे में बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती। बक़ौल डॉ सागर आज़मी
," तुझे एहसास है गर अपनी सरबुलन्दी का
तो फिर हर रोज़ अपने हाथ नापता क्यों हैं।।,
मुझे लगा कि ऐसे लोगों को बताना जरूरी है कि आप कोई खैरातीलाल के चच्चा नहीं हैं कि आप की निगाहें-करम पाकर हम ग़ालिबो-मीर की सफ में शामिल हो जाएंगे।
तो ठीक है आप बड़े साहित्यमार बने रहिये। हमें नयी कलमों के नए विचारों का नए खयालात का खैरमकदम करने दीजिए। हम अपने नवोदित भाईयों के साथ खुश हैं।हाँ किसी भी वरिष्ठ और सच्चे साहित्यकार का सम्मान हम सदैव करते आये हैं, और करते रहेंगे।
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