वे हिंदी के मित्र पुरुष हैं।
पर सेवा में पितृ पुरुष हैं।।
साहित्यिक उत्सव करते हैं
आयोजन अभिनव करते हैं
नई कलम को सदा बढ़ाते
निश्छल मन से उन्हें पढ़ाते
भावुक सरल चरित्र पुरुष हैं।
नव कवियों के पितृ पुरुष हैं।।
सबको हैं उत्साहित करते
प्रतिभायें सम्मानित करते
पर सम्मान नहीं लेते हैं
कुछ प्रतिदान नहीं लेते हैं
सचमुच बड़े विचित्र पुरूष हैं।
ये कविता के पितृ पुरुष हैं।।
वाणीपुत्र विनोद त्रिपाठी
हैं वरिष्ठ कलमों की लाठी
नई कलम को यदि बल देते
शुष्क कलम को भी जल देते
मन के स्वच्छ पवित्र पुरुष हैं।
वे भाषा के पितृ पुरूष हैं।।
सुरेश साहनी
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