अपने मुझे लगे हैं सारे बशर ज़हां के।

जो ग़ैर मानते हैं जाने हैं वो कहाँ के।।

यां छोड़ कर के जाना है जबकि जिस्मे-फ़ानी

हम ख़ुद को मान बैठे मालिक हैं इस मकां के।।

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