आसमां चांद तले ले आओ।
ये कि दो चार भले ले आओ।।
एक कुनबा है ज़माना सारा
फ़िक़्र पालो या पले ले आओ।।
अपने रिश्तों में हरारत ऐसी
तल्खियाँ जिससे गले ले आओ।।
एक मज़हब तो हो ऐसा जिस पर
नफरतों की न चले ले आओ।।
एक सूरज तो उम्मीदों वाला
पेशतर शाम ढले ले आओ।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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