आज कोई ग़ज़ल हुई ही नहीं।

गो मुआफ़िक फसल हुई ही नहीं।।


बात जिससे कि बात बन जाती

ऐसी कोई पहल हुई ही नहीं।।


फ़िर क़यामत पे हुस्न था राजी

आशिक़ी की अज़ल हुई ही नहीं।।


जबकि बोला था कल मिलेगा वो

उसके वादे की कल हुई ही नहीं।।


जो उन्हें नागवार गुजरी है

बात वो दरअसल हुई ही नहीं।।


जितना आसान सोचते हैं हम

जीस्त इतनी सहल हुई ही नहीं।।


साहनी कब खलल पसन्द रहा

ज़िन्दगी बेखलल हुई ही नहीं।।


सुरेश साहनी कानपुर

945154532

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