तमाशा आज बढ़ कर देखते हैं।
चलो सूली पे चढ़ कर देखते हैं।।
न सँवरे आज तक हम नफ़रतों से
मुहब्बत से बिगड़ कर देखते हैं।।
नहीं दिखते हैं अपने ऐब ख़ुद को
हम औरों को तो गड़ कर देखते हैं।।
बहुत कमजोरियां हैं अपने अंदर
चलो इन से ही लड़ कर देखते हैं।।
जमी है धूल मन के आईने पर
फ़क़त हम तन रगड़ कर देखते हैं।।
हमी दुश्मन हैं अपने साहनी जी
कभी ख़ुद से झगड़ कर देखते हैं।।
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