ग़ैर किनको बता रहे थे हम।

मात अपनों से खा रहे थे हम।।


कुछ न मांगेंगे मुतमईन रहें

आप को आजमा रहे थे हम।।


गाल कितने गुलों के सुर्ख हुए

क्या कोई गुल खिला रहे थे हम।।


दौरे-माज़ी में क्यों चले आये

जब कहीं और जा रहे थे हम।।


हिचकियों में ही नफ़्स टूट गयी

क्या उसे याद आ रहे थे हम।।


बेवफ़ाई पे उसकी क्या रोना

इसलिए मुस्कुरा रहे थे हम।।


इब्ने- आदम हुये अगर गिर कर

तुम कहो कब ख़ुदा रहे थे हम।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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