रहमो-नज़रे-करम अजी है क्या।
उस मुक़द्दर से ज़िन्दगी है क्या ।।
हम न ढोएंगे अब मुक़द्दर को
रूठ जाने दो प्रेयसी है क्या।।
किसलिये मय को दोष देते हो
जानते भी हो बेख़ुदी है क्या।।
कुछ तो तदबीर पर भरोसा कर
सिर्फ़ तक़दीर की चली है क्या।।
क्यों मुक़द्दर से हार मानें हम
कोशिशों की यहाँ कमी है क्या।।
जागता भी है सो भी जाता है
ये मुक़द्दर भी आदमी है क्या!!
इतना मालूम है ख़ुदा अक्सर
पूछता है कि साहनी है क्या।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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