दर्द इतना नहीं मगर फिर भी।

ज़ख़्मे-दिल का है कुछ असर फिर भी।।


ये नहीं है कि वो ज़हर देगा

कुछ दवाओं में है ज़हर फिर भी।।


ख़ुद नहीं जानता है वो खुद को

और बनता है नामवर फिर भी।।


छोड़ना है सराय फ़ानी को

बन रहे हैं सभी के घर फिर भी।।


तीरगी का गुमान वाजिब है

रात के बाद है सहर फिर भी।।

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