हमनें की तदबीरें लेकिन।
रूठी थी तक़दीरें लेकिन।।
बेशक़ हम आईना दिल थे
पत्थर थी जागीरें लेकिन।।
सोचा कुछ तो बात करेंगीं
गूंगी थी तस्वीरें लेकिन।।
किस्से तो अब भी क़ायम हैं
टूट गईं तामीरें लेकिन।।
राँझे अब भी जस के तस हैं
बदल गयी हैं हीरें लेकिन।।
छत साया देना चाहे है
जर्जर हैं शहतीरें लेकिन।।
यूँ सुरेश परतंत्र नहीं है
मन पर हैं ज़ंजीरें लेकिन।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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