अभी चल रही हैं उम्मीदों की साँसें।
चलो रोशनी में अंधेरे तलाशें।।
अभी हँस रहे हैं मिलेगी जो फुरसत
निकालेंगे आहें भरेंगे उसाँसें ।।
चलो हम करें एक दूजे को रोशन
हमें तुम संवारो तुम्हें हम तराशें।।
ये सब जीस्त को काटने के लिये हैं
खुशी की कुल्हाड़ी गमों के गड़ासें।।
ये किसने कहा है अंधेरा मिटेगा
निकलती नहीं हैं कभी तम की फांसें।।
यही है वफ़ा का सिला साहनी जी
उठाते रहो आरजुओं की लाशें।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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