हम तेरे गाम तक न आ पाते।

सूरते-आम तक न आ पाते।।


इस नज़ाकत से तो दवा लेकर

तुम यहाँ शाम तक न आ पाते।।


हम ने आगाज़ कर दिया वरना

तुम भी अन्जाम तक न आ पाते।।


इश्क़ ने कुछ तो कर दिया काबिल

वरना इल्ज़ाम तक न आ पाते।।


हम को ईनाम से गुरेज़ रहा

तुम भी इक़राम तक न आ पाते।।


खाक़ फिरते गली में आवारा

जब तिरे बाम तक न आ पाते।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है