जबकि वो देवता न था फिर भी।

आदमी तो बुरा न था फिर भी।।


जाने कैसे वो दिल में आ पहुंचा

उसपे मेरा पता न था फिर भी।।


जाने क्या था कि वज़्म था रोशन

घर तो अपना जला न था फिर भी।।


वो गया तो गया उदासी क्यों

जबकि अपना सगा  न था फिर भी।।


ग़म ने बढ़ के गले लगा ही लिया

इस क़दर राब्ता न था फिर भी।।


कितने इल्ज़ाम दे गयी दुनिया

साहनी बेवफा  न था फिर भी।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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