ये उलटबांसिया नहीं कोई।

साफ़ कहना भी है ग़ज़लगोई।।


ज़िन्दगी उम्र भर नहीं जागी

मौत भी उम्र भर कहाँ सोई।।


किसके शानों पे  बोझ रख देता

लाश अपनी थी  उम्र भर ढोई।।


इश्क़ का दाग है कहाँ छुटता

तन चदरिया रगड़ रगड़ धोई।।


साहनी कब हँसा था याद नहीं

जीस्त लेकिन कभी नहीं रोई।।


उलटबांसी/ व्यंजना की एक पद्धति, घुमा फिरा कर कहना

ग़ज़लगोई/ग़ज़ल कहना

शानों/कंधों

जीस्त/जीवन


सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

अपरिभाषित

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है