हम जिन्हें देवता समझते हैं।
देखना है वो क्या समझते हैं।।
दरअसल वो है इश्क़ की लज़्ज़त
आप जिसको अना समझते हैं।।
हुस्न नेमत ख़ुदा की है हम पर
आप क्यों कर बला समझते हैं।।
शेर सुनकर जो हँस दिये गोया
वो हमें मेमना समझते हैं।।
आप शायद रदीफ़ भी समझे
हम बहर क़ाफ़िया समझते हैं।।
साहनी यूँ ग़ज़ल नहीं कहते
बात का मर्तबा समझते हैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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