मुद्दतों नैन अश्क़बार रहे।
अब कोई कितना सोगवार रहे।।
ख़ुद को नाहक़ मकीन समझे थे
जबकि हम इक किरायेदार रहे।।
एक झटके में टूट जाना है
लाख हम में कोई क़रार रहे।।
पाँचवे दिन सुना वो आये थे
हैफ़ दिन ज़िन्दगी के चार रहे।।
हो ख़िज़ा चार सू नहीं मतलब
मयकदे में मगर बहार रहे।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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