जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं सपना देख रहा हूँ। जिस चाँद को अल्ला मिया ने इतना खूबसूरत बनाया था कि हमारे जैसे शायर मसलन ग़ालिब फ़िराक़ वग़ैरा वग़ैरा उसकी शान में जाने क्या क्या लिख गये हैं और लिख रहे है। लेकिन क्या बतायें।  बुजुर्गाने-दीन यूँ ही नहीं फरमा गये हैं कि हुस्न को पर्दे में रहना चाहिये। पर क्या किया जाये। आख़िर वो हो ही गया जिसका डर था। चाँद की सारी कमियां मन्ज़रे आम हो गयीं। अजी दाग धब्बे तो छोड़िये कील मुंहासे तक दिखायी दे गये।

  अभी मैं कुछ सोच पाता कि उसके पहले ही मेरे बेसिक फोन की घण्टी बज पड़ी। में भी आश्चर्य में था कि कोई दस बारह साल हो गये इस फोन की घण्टी बजे हुये।भारत संचार निगम से इस फोन का सम्बंध-विच्छेद  बहुत पहले हो चुका है।अब पुराने बिल ,एक दूरभाष निर्देशिका और इस यंत्र के रूप में टेलीफोन विभाग की स्मृतियाँ ही शेष बची हैं। 

   खैर मैंने लेटे लेटे  स्पीकर ऑन कर दिया।उधर से जो बाइडेन साहब लाइन पर थे।बेचारे बोल पड़े यार आप लोग हमारे पीछे काहे पड़े हो?

 मैंने कहा , सर! हम लोग वैसे पुरूष नहीं हैं जो आदमी के पीछे पीछे लुलुवाये फिरें। और जब दुनियां भर की विश्व सुंदरियां भारत का नाम रोशन कर रहीं हैं तो हम लोग ऐसा क्यों करेंगे। "

 वो बोले यार ! एक तो तुम लोग सूरज को लीलने वाला किस्सा सुना सुना के सबकी फाड़े रहते हो। अभी कल मंगल ग्रह पर यान भेजे थे। और आज चंद्रमा पर भी कब्जा करने का दावा करने लगे हो।

    अचानक तिवारी जी कहीं से टपक पड़े और बोले, अरे भईया साहनी जी! केहिते बतियाय रहे हो?

  मैंने बताया कि बाइडेन साहब हैं और बिचारे चंद्रयान को लेकर टेंशन में हैं। 

इतना सुनते ही तिवारी जी फट पड़े।

बोले, काहे! का तकलीफ है?अरे जब तुम चंद्रमा पर गये रहेंव तब क्या हम से पूछि के गये रहेंव। अब जानि लेव कि चंद्रमा तो हमार हुई गया।और हुई का गया।हमारा था हमारा है और हमारा रहेगा। 

 अरे रामायण गवाह कि नवग्रह रावण के दरबार मे हाजिरी लगाते थे। हनुमान जी ने आज़ादी दिलाई तो हवा में उड़ने लगे। और ये चन्द्रमा भी कितना भागेगा। इस पर तो जाने कब से हम लोग इंक़वायरी बैठाले पड़े हैं।ये पन्द्रह पन्द्रह दिन घर से फरार रहता है।  अहिल्या कांड की पुरानी फ़ाइल अब भी पड़ी है। कैसे नहीं मानेगा आखिर  ईडी फीडी कब काम आएगी

  बाइडेन ने फोन पर घबराकर कहा अरे साहनी जी! ये कौन हैं भाई और अहिल्या का क्या मामला है? क्या इनको पता नहीं कि हम कौन हैं?

 हम कुछ जवाब दे पाते उसके पहले ही उनका नेटवर्क जवाब दे गया। मैंने सोचा कि इनसे अच्छा तो दशानन महाराज का नेटवर्क था। बिना टेलीफोन लाइन के काल करके पाताल लोक से अहिरावण को बुलवा लिया था।

 पर उधर बाइडेन भैया का फोन कटा और इधर मेरी नींद भी खुल गयी । मैंने देखा कि हमारे अनुजवत मित्र तिवारी जी द्वार से साहनी भैया ! की आवाज दे रहे थे।

खैर! सपना ही सही पर मुझे गर्व हुआ कि कुछ भी हो अपना बीएसएनएल आज भी चंदा मामा की बात अम्मा तक पहुंचा रहा है। 


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

#व्यंग्य , #हिंदीसाहित्य

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