उसके सांचे में ढल रहे हैं हम।

मोम बन कर पिघल रहे हैं हम।।


भीगता है वो गुलबदन लेकिन

उसकी गर्मी में जल रहे हैं हम ।।


हुस्न मंज़िल से बेखबर मत रह

इश्क़ की राह चल रहे हैं हम।।


हुस्न आएगा इश्क़ की जानिब

अपना लहज़ा बदल रहे हैं हम।।साहनी


आज अज़दाद की दुआओं से

आसमानों को खल रहे हैं हम।।


क्यों हमारी नकल करे है ख़ुदा

क्या  किसी की नकल रहे है हम।।

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