ज़िन्दगी कुछ इस तरह
गुज़रेगी ये सोचा न था
हादिसे भी इस तरह
पेश आयेंगे सोचा न था.....
हादिसे दर हादिसे
ज़िन्दगी दर ज़िन्दगी
एक अनजाने सफ़र पर
दौड़ती सी भागती सी
और फिर ठहराव कुछ पल
मृत्यु के संदेश गोया
जीस्त क्या अनुबंध कोई
रुढिगत आदेश गोया
पर अचानक ख़त्म कर दें
ये कभी सोचा न था....
ज़िन्दगी के ज़ेरोबम क्या
हैं मरहले गाम जैसे
ग़म तुम्हारे हैं ख़ुशी के
मुस्तक़िल पैगाम जैसे
आज बरहम हैं जो हमसे
कल मिलेंगे प्यार लेकर
आज के इनकार कल फिर
आयेंगे इक़रार लेकर
टूट कर रिश्ते पुनः
जुड़ जाएंगे सोचा न था......
ज़िन्दगी कुछ इस तरह
सुरेश साहनी कानपुर
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