कोई बेकल घूम रहा है बस्ती में।

वो भी पागल घूम रहा है बस्ती में।।


अब तो हर दल घूम रहा है बस्ती में।।

मानो चम्बल घूम रहा है बस्ती में।।


हवसी आदमखोर दरिंदे वहशी सब

गोया जंगल घूम रहा है बस्ती में।।


रोपे थे जो कीच कमल की आशा में

बनकर  दलदल घूम रहा है बस्ती में।।


बेटे भटक रहे हैं लाल दुपट्टों में

माँ का आँचल घूम रहा है बस्ती में।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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