बेशक़ फ़ितरत से आवारा मैं ही था।
घर के होते भी बंजारा मैं ही था।।
बेशक़ अपनी मन्नत तुमको याद न् हो
आसमान से टूटा तारा मैं ही था।।
इन अश्कों के सागर किसने देखे हैं
हैफ़ समुंदर जितना खारा मैं ही था।।
मैं ही ढूंढ़ रहा था मुझको साहिल पर
सागर मैं था और किनारा मैं ही था।।
जाने कितने डूबे तेरी आँखों में
केवल जिसने पार उतारा मैं ही था।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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