किसलिये अजनबी ऊज़रे को भजें

उससे बेहतर है हम सांवरे को भजें।।


हमसे कहता है जो हर घड़ी मा शुचः

हम उसे छोड़ क्यों दूसरे को भजें।।


उसके मुरली की तानों में खोये हैं हम

किसलिये फिर किसी बेसुरे को भजें।।


बृज का कणकण मेरे यार का धाम है

 तब कहो अन्य किस  आसरे को भजें।।


जितना नटखट है उतना ही गम्भीर है

हम उसे छोड़ किस सिरफिरे को भजें।।


सुरेश साहनी कानपुर

9451545132

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