जीत कर हारना पड़ा मुझको।
मन मेरा मारना पड़ा मुझको।।
सच के दुश्मन कहीं ज़ियादा थे
झूठ स्वीकारना पड़ा मुझको।।
मुझ पे हावी था कोई डर इतना
ख़ुद को ललकारना पड़ा मुझको।।
दे दिया मन छटाँक के बदले
भाव से प्यार ना पड़ा मुझको।।
साहनी फूट फूट कर रोया
और पुचकारना पड़ा मुझको।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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