दिल में शायद बसा हो डर कोई।

यूं ही जाता नहीं मुकर कोई।।


आप को भी यकीन आ जाता    

उसकी बातों में था असर कोई।।


शोर बरपा है कुछ परिंदों में

गिर गया है बड़ा शजर कोई। 


आशियाने तमाम उजड़े हैं

जब बसा है नया शहर कोई।।


सिर्फ़ उल और जलूल लिखता है

साहनी भी है सुखनवर कोई।।


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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