हम कहाँ से तुझे तबाह लगे।

जबकि अगियार सरबराह लगे।।


झूठ हर सू से बादशाह लगे।

सब ज़हां उसकी बारगाह लगे।।


जाने क्यों कर तेरी तवज्जह भी

दुश्मनों की ही रस्मो-राह लगे।।


शेख जायज़ है जो भी जन्नत में

हमको कैसे न वो मुबाह लगे।।


चश्मे कौसर को खाक़ पायेगा

मयकशी जब तुझे गुनाह लगे।।


बहरे-ग़म से उबारने वाला

मयकदा क्यों न ख़ानक़ाह लगें।।


दामने-रिन्द पे सवाल किया

जा तुझे साहनी की आह लगे।।


अगियार/ ग़ैर का बहुवचन,  सरबराह/प्रभावशाली, सरदार,   सू/ तरफ़   ज़हां/संसार    बारगाह/दरबार

तवज़्ज़ह/ आकर्षण , ध्यान वरीयता,   

रस्मो-राह /मेलजोल   

शेख़/ धर्मोपदेशक  जायज़/ उचित   जन्नत/स्वर्ग,  मुबाह/ शरीयत के अनुसार

चश्मे-कौसर/ शराब का झरना, स्वर्ग की नहर   मयकशी/ शराब पीना

बहरे-ग़म/ दुख का सागर   मयकदा/मधुशाला    ख़ानक़ाह/ मठ

दामने-रिन्द/ शराबी का दामन 


सुरेश साहनी, कानपुर

9451545132

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